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Arya Samaj Indore - 9302101186. Arya Samaj Annapurna Indore |  धोखाधड़ी से बचें। Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage Booking और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी अन्नपूर्णा इन्दौर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्दौर में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी के अतिरिक्त इन्दौर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Bank Colony Annapurna Indore is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Annapurna Indore is the only Mandir controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Indore. We do not have any other branch or Centre in Indore. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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परिवार के सद्व्यवहार से संसार का श्रृंगार

दोनों पति और पत्नी का पृथक्‌-पृथक्‌ ही नहीं, सम्मिलित प्रभाव भी समाज पर पड़ता है । समाज भी इनको अपने प्रभाव में ढ़ालने के लिए यत्नशील रहता है। पति अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, प्राघ्यापक, अधिवक्ता, अभियन्ता, चिकित्सक आदि किसी भी क्षमता से जब अपने कार्य-स्थल पर पहुंचता है और यदि वह किंचित्‌ असामान्य या विवादयुक्त व्यवहार करता है तो लोग यही कहते हैं,लगता है आज श्रीमान घर से लड़ कर आये हैं। ऐसे ही यदि वे घर में असामान्य व्यवहार करते हैं, तो कहा जाता है कि श्रीमान कार्यालय में झगड़ कर आये हैं। इस प्रकार परिवार से समाज, समाज से परिवार तक व्यक्तित्व के विकास-ह्रास की ये द्विपथी प्रणाली निरंतर चलती रहती है और अनजाने ही हम अपना एक निश्चित रूप निर्धारण कर लेते हैं।

आपके हाथ में एक फूल है-रंगीन व सुगंधित, या आपके हाथ में एक फल है सुन्दर और स्वादु। इनके गुणों की क्या गणना ! एक फूल या फल यों ही नहीं बन गया। इसके पीछे एक पादप था। पादप में जड़ें, शाखायें, टहनियां व पत्तियां थी। इनके भी पीछे माली का पोषण और प्रशिक्षण था। इसी प्रकार मधुर जीवन-व्यवहार और लोकप्रिय आकर्षक व्यक्तित्व के निर्माण में कोई एक ही तत्व नहीं, अपितु अनेक कारकों का समावेश होता है।

क्षण-क्षण के वाक्यबाण घर-परिवार-समाज, यहां तक कि पति-पत्नी के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं, इनको यदि उचित मोड़ दे दिया जाता है तो कुशल, अन्यथा उथल-पुथल हो जाती है।

आकर्षक व्यक्तित्व के निर्माण में जिन तत्वों की अपरिहार्य सहभागिता है, उनका वर्णन इस वेद-मंत्र में हमें सहज ही मिल जाता है। देखिये-

इडे रन्ते हव्ये काम्ये चन्द्रे ज्योति अदिते सरस्वति महि विश्रुति ।

एता ते अध्न्ये नामानि देवेभ्यो मा सुकृतं ब्रूतात्‌॥ यजुर्वेद 8.43

'इडे'- विद्यादि प्रशंसनीय गुण होना आवश्यक है। विद्या से ही कार्य में कुशलता आती है। कार्य-सक्षम होने पर भी अभिमान नहीं होना चाहिये। अभिमानी होने से सक्षम व्यक्ति से भी लोग दूर रहेंगे। विद्या-वृद्धि के साथ-साथ व्यक्ति में नम्रता-सुकोमलता का विकास वैसे ही होना चाहिए, जैसे फलों से लद जाने पर वृक्षों की टहनियां झुक जाती हैं। ऐसा व्यक्ति 'रन्ते' रमणीक-रमणीय सहज व सुन्दर हो जायेगा, तो अन्य लोग उससे श्रद्धा करेंगे और उसके समीप जायेंगे। कुशलता और कोमलता अथवा विद्या ये सुन्दरता - 'हव्ये' अर्थात्‌ हवि या रचनात्मक साधन-सामग्री से परिपूर्ण होनी चाहिये। विद्या-सुन्दरता या वस्तु भण्डार इनमें से कुछ या सब कुछ जब आपके पास होगा, तभी आपका 'काम्ये' कमनीय मनमोहक स्वरूप किसी को अपनी ओर आकर्षित कर सकेगा। लोग अपनी कोई कामना लेकर आपके पास आयेंगे। कामना पूर्ण कर देने पर फिर वही व्यक्ति 'चन्द्रे' अत्यंत आनन्द देने वाला बन जायेगा। चन्द्रमा की चन्द्रिका अपने शीतल प्रकाश के लिये प्रसिद्ध है। यह आदान-प्रदान की सूचक भी है। चन्द्रमा सूर्य से प्रकाश लेता है, पृथ्वी को देता भी है, वह भी सूर्य की प्रचण्ड उष्णता को समाप्त कर मोदमय शीतल स्वरूप में। चन्द्रमा चाहे द्वितीया का हो या पूर्णिमा का उसके राज्य में तारागण मुदते ही नहीं टिमटिमाते रहते हैं, जबकि सूर्य के राज्य में सब छिप जाते हैं, वह अकेला ही रह जाता है। 'चन्द्र' स्वभाव होने पर व्यक्ति 'ज्योति' श्रेष्ठ शील से ज्योतित हो उठेगा। अग्रि की ज्वाला भस्म कर देती है, परन्तु ज्योति प्रकाश ही नहीं देती, अपितु उसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाती है। एक दीपक से अनेक अनेक दीपक जलते रहते हैं । ज्वाला अपनी लपट में लपेटकर अपने आधार को राख करके स्वयं का अस्तित्व खो देती है, किन्तु दीपक की ज्योति एक परम्परा बन जाती है। परम्परागत त्याग की शक्ति विकसित होने पर व्यक्ति में 'अदिते' -आत्मिक दृढ़ता स्थापित होती है और साथ ही उसे अंधविश्वास एवं आडम्बर से रहित 'सरस्वती'-प्रशंसित विज्ञानमयी बुद्धि और सरस वाणी प्राप्त हो जाती है। यही सरस्वती व्यक्ति को ऊंचा उठाकर 'महि'-चरमोत्कर्ष,सफलता एवं उच्च्ता तक पहुंचा देती है। 'महि' भूमि को भी कहते हैं, जिसका विशेष गुण क्षमा होता है। ''क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात'' की बात इसी से पूर्ण होती है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि आकाश तक सिर ऊंचा उठ जाने पर भी चरण धरती पर जमे रह ने चाहिएं। ऊंचाईयों पर चढ़ने के बाद भी 'विश्रुति'-वेदाध्ययन-पठन-पाठन- स्वाध्याय और अच्छी-अच्छी बातें जानने के लिए अपने मस्तिष्क के द्वार बंद नहीं कर लेने चाहिएं।

उक्त क्रमानुसार जिस व्यक्ति का विकास होगा वह वास्तव में 'अघ्न्ये' अताड़नीय हो जायेगा। जिसका लोग आदर करेंगे, श्रद्धा रखेंगे, प्रेरणा व सहायता प्राप्त करेंगे उसे कौन मारेगा, प्रत्युत उसकी तो भरपूर रक्षा की जाएगी। ये वेद-वर्णित शब्द कोरे सिद्धान्त के बोधक नहीं, अ  पितु नितान्त व्यावहारिक पक्ष प्रस्तुत करते हैं । यदि पत्नि के नाम इडा, रन्ती, हविष्मती, चन्द्रमुखी, ज्योति, अदिति, सरस्वती, मही व श्रुति हो सकते हैं, तो पति के भी इडापति, रन्तिदेव, हविष्मन्त, चन्द्र, ज्योतिस्वरूप, आदित्य, सारस्वत, महीपति व श्रवण नाम हो सकते हैं, जैसे योग्य चिकित्सक एक आरोग्यकारी औषधि का निर्माण करने के लिए भांति-भांति की अनेक जड़ी-बूटियों का मिश्रण तैयार करता है और रोगी को एक छोटी पुड़िया पकड़ा देता है। उसी प्रकार यह वेदमंत्र भी अनेक प्रतीकों के योग से एक सूत्र का सृजन करता है, जो किसी भी व्यक्ति को लोकप्रिय बना सकता हैं। विद्या--रमणीयता--साधन सम्पन्नता--कामनापूर्ति--आनन्द आदान प्रदान--श्रेष्ठ शील युक्त सुकीर्ति--आत्मविश्वास की दृढ़ता--आडम्बर पाखण्डरहित बुद्धि व वाणी--उच्च्ता--आजीवन ज्ञानार्जन व गुण ग्रहण=लोकप्रिय मधुर व्यक्तित्व। यहां पर रेखा (--) के चिन्ह इसलिए अंकित किए गए हैं, क्योंकि एक प्रतीक के होने से दूसरा प्रतीक प्रकट होने लगता है और इन सभी प्रतीकों का महायोग ही लोकप्रियता का अंतिम परिणाम है। साथ ही एक प्रतीक की प्राप्ति का संकेत उससे अगले प्रतीक से होता है।

एक-एक ग्रास से हमारी भूख शान्त होती है। एक-एक दिन के भोजन से हमारा रक्त-मज्जा और ऊर्जा बनते हैं, पर धीरे-धीरे, एकदम नहीं। इस प्रकार मंत्र में व्यक्त अभिलक्षण भी व्यक्ति में शनैह्नशनैह्न प्रवेश करके उसके व्यक्तित्व को संस्कारित करते रहते हैं। उसे पता नहीं चल पाता है और वह महान्‌ जनप्रिय बन जाता है। कहा गया है-

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।

माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय॥

पर फल टपकने में देर नहीं लगती है। व्यक्ति को ऊंचा उठने में समय लगता है, गिरने में देर नहीं लगती। अतएव उठने के बाद गिरने से बचने के लिए सावधानी अपरिहार्य है। ऊपरी मंजिलों पर सीढ़ी पर सीढ़ी चढ़ते हैं, पर गिरने पर सीढ़ियां एकदम छूटती चली जाती हैं । व्यक्ति यकायक धड़ाम से नीचे आ जाता है।

जीवन जीने के दो व्यवहारिक पक्ष स्पष्ट हैं । एक घर के भीतर, दूसरा घर के बाहर। दोनों एक दूसरे को पालित, पोषित और पल्लवित करते हैं। घर से निकलते समय पारिवारिक माधुर्य को साथ लेकर जायें और घर में प्रवेश के समय बाहर के कलुष को वैसे ही बाहर रहने दें, जैसे स्वादिष्ट फल का रस मुंह में और छिलका बाहर।

किसी व्यक्ति को पता चला कि अमुक परिवार में अमृत फल है। वे उसके दर्शन हेतु वहां पहुंचे। वहां एक कृशकाय अतिवृद्ध व्यक्ति से भेंट हुई, जिसने बताया कि अमृतफल मेरे यहां नहीं, मेरे बड़े भाई के यहां हैं। वे पर्वत की तलहटी में रहते हैं। वे सज्जन वहां भी पहुंच गए। एक अधेड़ व्यक्ति से भेंट हुई। उसने कहा कि अमृतफल मेरे पास था, किंतु अब नहीं है। हां, मेरे बड़े भाई जो पर्वत के ऊपर रहते हैं, उनके पास है। सज्जन चढ़ाई को पार कर वहां भी पहुंचे और देखकर विस्मित हो गए कि ये सबसे बड़ा भाई तो जवान है। उनसे भी अमृतफल की चर्चा हुई और बड़े भाई ने दर्शन कराने का आश्वासन दे दिया। उस सबसे बड़े भाई ने अतिथि का स्वागत सत्कार किया और कई दिन तक उनका आतिथ्य करते रहे। एक दिन वे सज्जन बोले, मुझे अमृतफल का आपके यहां आभास तो हो रहा है आपके घर की सुख, शांति, संतोष को देखकर, पर कृपया दर्शन भी करा दे,ं ताकि मैं अपने नगर को प्रस्थान करूं। बड़े भाई ने भोजन परोसने आई अपनी पत्नी की ओर संकेत करके कहा कि यही हमारा अमृत फल है। अतिथि सज्जन को मझले भाई की विवशता स्मरण हो उठी, जब उनको एक बार ही भोजन कराने के लिए पत्नी की झाड़ सुननी पड़ती थी और सबसे छोटे भाई तो एक बार अल्पाहार भी नहीं करा सके थे, होटल में चायपान कराके क्षमा मांग ली थी। जबकि सबसे बड़े भाई के यहां सुलभ आतिथ्य सहर्ष मिला और यही इनकी जवानी का रहस्य भी है। गृहिणी या पत्नी रूपी फल तो सर्वत्र है, पर जहां वे अमृत फलरूप धारण कर लेती हैं, वहां मानव का व्यक्तित्व शालीन, सु्‌हृद् एवं सौम्य बन जाता है और इस प्रकार परिवार के व्यवहार में संसार का श्रृंगार देदीप्यमान हो उठता है। लेखक- पं. देवनारायण भारद्वाज

 

जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
वेद के चार काण्ड हैं।
Ved Katha Pravachan - 87 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

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