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Arya Samaj Indore - 9302101186. Arya Samaj Annapurna Indore |  धोखाधड़ी से बचें। Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage Booking और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी अन्नपूर्णा इन्दौर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्दौर में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी के अतिरिक्त इन्दौर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Bank Colony Annapurna Indore is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Annapurna Indore is the only Mandir controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Indore. We do not have any other branch or Centre in Indore. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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हिन्दू नेता ध्यान से पढें !

आपस की फूट से देश का पतन - जब आपस में भाई-भाई लड़ते हैं तभी तीसरा विदेशी आकर पंच बन बैठता है। आपस की फूट से कौरव-पाण्डव और यादवों का सत्यानाश हो गया सो तो हो गया, परन्तु अब तक भी वही रोग पीछे लगा है। न जाने यह भयंकर राक्षस कभी छूटेगा या आर्यों को सब सुखों से छुड़ाकर दु:ख सागर में डूबा मारेगा। उसी दुष्ट दुर्योधन, गोत्रहत्यारे, स्वदेश विनाशक नीच के दुष्ट मार्ग में आर्य लोग अब तक भी चलकर दु:ख बढा रहे हैं। परमेश्वर कृपा करे कि यह राजयोग हम आर्यों में से नष्ट हो जाए। (सत्यप्रकाश, दशम समुल्लास) महर्षि दयानन्द सरस्वती

हिन्दू शब्द की प्राचीनता - मेरी दृष्टि में हिन्दू संस्कृति एक ही है। मेरा यह दृढ विचार है कि हिन्दू शब्द भी उतना ही प्राचीन है जितना भारतीय शब्द।

अब तक संशोधन के आधार पर हिन्दू शब्द की प्राचीनता ईसा पूर्व 486 वर्ष तक मानी गई है।

(The name of Hindu appears in the form of ‘Hindus’ in the inscription on the monument of the Darius Hystaspes near Persepolis 486 B.C. Encyclopedia of Raligions)

हिंसया दूयते यस्मात्‌ हिन्दूरित्यभिधीयते।

हिन्दू वह जो हिंसात्मक कर्म से घृणा करता है अथवा जिसे हिंसात्मक कर्म से दु:ख होता है, वह हिन्दू है।

मेरुतन्त्र में भी लिखा है- हीनं च दूषयत्येष हिन्दूरित्यभिधीयते। हिन्दू वह जो हीन कर्म से द्वेष करता है। इसी परिभाषा को और विस्तृत तथा स्पष्ट करते हुए रामकोषकार ने लिखा है-

हिन्दुर्दुष्टो न भवति ना नार्यो न विदूषक:।

सद्धर्मपालको विद्वान्‌ श्रौतधर्मपरायण:।।

हिन्दू दुष्ट, अनार्य और विदूषक अर्थात्‌ द्वेष करने वाला नहीं होता। इसके विपरीत वह सद्धर्म का पालक, विद्वान्‌ और श्रुति-स्मृति में प्रतिपादित धर्म का आचरण करने वाला होता है। - वेदमूर्ति पं. श्रीपाद्‌ दामोदर सातवलेकर

हिन्दू सम्प्रदाय नहीं, मानव धर्म है - यद्यपि धर्म अपरिवर्तनशील, शुद्ध और सनातन है। उसमें वृद्धि नहीं, ह्रास नहीं। किन्तु व्यवहार में धर्म, देश, काल और पात्र के अनुसार सदा परिवर्तित हुआ है, होता रहेगा। वर्ण धर्म, मानव धर्म, युग धर्म, आपद्‌ धर्म ये देश के अनुसार, काल के अनुसार, पात्र के अनुसार बदलते रहते हैं।

हिन्दू धर्म सम्प्रदाय नहीं, वह मानव धर्म है। हमारे यहॉं धर्म शब्द बड़ा ही व्यापक है । उसके भावों को द्योतित करने वाला दूसरा शब्द किसी भाषा में नहीं है। कहीं धारणा से धर्म माना है, कहीं दस लक्षण वाला धर्म माना है। अविरोधी सिद्धान्त को धर्म कहा गया है। कहीं मनसा-वाचा-कर्मणा सबके हित में रत हो, सबका सहृदय हो, वह धर्म है। कहीं वेद, स्मृति, सदाचार और अपनी आत्मा से निर्णीत मत ही धर्म है। कहीं महाजनों के पथ को ही धर्म बताया गया है। सारांश यह कि हमारे यहॉं तो धर्म की एक ही व्याख्या नहीं।

हम कहें कि वर्णाश्रम धर्म है। कहीं महाजनों के पथ को मानने वाला ही हिन्दू है, तो हिन्दुओं में ऐसे बहुत से वर्ग हैं जो वर्णाश्रम धर्म को नही मानते। हम कहें कि जो वेद शास्त्रों को माने वही हिन्दू है तो जैन, लिंगायत तथा और भी ऐसे सम्प्रदाय हैं, जो वेदों को प्रमाणित नहीं मानते। यह कहें कि जो अवतार माने वही हिन्दू है, बहुत से मत अवतारों का खण्डन करते हैं। अत: हमारे मत में वही हिन्दू है जो भारतीय संस्कृति को माने। अब संस्कृति क्या? तो यह संस्कृति शब्द भी बड़ा व्यापक है। रहन-सहन भाषा, वेश, परम्परागत आचार तथा देश की विचारधारा, स्वदेशप्रेम ये सब संस्कृति के अन्तर्गत हैं। जो भारत की सभ्यता, भारतीय धर्म, भारतीय समाज, आचार-विचार को मानकर उसी अनुसार आचरण करने की चेष्टा करें, वे हिन्दू हैं। - सन्त प्रभुदत्त ब्रह्मचारी

हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व - समस्त संसार में हिन्दुओं की ही एक ऐसी जाति है जिसने धार्मिक एवं दार्शनिक सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप दिया है। वही एक जाति पृथ्वी पर ऐसी रह गयी है जो वेदशास्त्रों पर अगाध श्रद्धा रखती है। वही एक जाति है जो न केवल आत्मा की अमरता पर विश्वास रखती है, बल्कि अनेकता में एकता को भी प्रत्यक्ष देखती है। ये ऐसे तत्त्व हैं जिन्हें आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों समस्त विश्व अपनाना चाहेगा, इनकी आवश्यकता को अनुभव करेगा। उस समय यही हिन्दू जाति उसे मार्ग दिखलायेगी।

हिन्दुत्व का परित्याग कर भारतीय राष्ट्रीयता जीवित नहीं रह सकती।

उत्तम: सर्वधर्माणां हिन्दू धर्मोऽयमुच्यते।

रक्ष्य: प्रचारणीयश्च सर्वभूतहिते रत:।। - महामना पं. मदनमोहन मालवीय

हिन्दू धर्म "रिलीजन" नहीं - संसार में एकमात्र जो सभी वैषम्य के बीच में ऐक्य, समरत विरोधो में शान्ति का आनयन करता है, समस्त विच्छेदों के बीच एकमात्र मिलन का सेतु है उसी को धर्म कहा जाता है।

हमारा धर्म "रिलीजन" नहीं है, वह मनुष्यत्व का एकांश नहीं है। यह पालिटिक्स से तिरस्कृत, युद्ध से बहिष्कृत, व्यवसाय से निर्वासित, प्रत्याहिक व्यवहार से दूरवर्ती नहीं है। समाज के किसी भी विशेष अंश में उसे प्राचीरबद्ध करके मनुष्य के आरामआमोद से, काव्य-कला से, ज्ञान-विज्ञान से उसकी सीमा की रक्षा करने के लिये सदैव पहरा खड़ा नहीं किया जा सकता। ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ आदि आश्रम इसी धर्म को जीवन के भीतर, संसार के भीतर, सर्वतोभाव से सार्थक करने के सोपान हैं। धर्म संसार के आंशिक प्रयोजन साधन के लिए नहीं है, अपितु समग्र संसार ही धर्मसाधन के लिए है। इस तरह धर्म ने घर के भीतर गृहधर्म, राजत्व के भीतर राजधर्म होकर भारतवर्ष के सम्पूर्ण समाज को एक अखण्ड तात्पर्य का दान किया है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर

जजिया से हिन्दू मुसलमान बने : नेहरू जी

कुछ लोगों ने अपना मजहब इसलिए बदल लिया कि इस्लाम उन्हें अच्छा लगा। कुछ लोग डर की वजह से मुसलमान हो गए और कुछ इसलिए कि जीतने वालों की तरफ रहना अच्छा था। लेकिन तबदीली की असली वजह आर्थिक थी। जो लोग मुसलमान नहीं बने उन्हें जजिया देना पड़ता था। गरीबों के ऊपर यह बहुत बड़ा बोझ था। बहुत-से तो सिर्फ इस बो़झ से बचने के लिए अपना मजहब तब्दील करने के लिए तैयार हो जाते थे। ऊंचे वर्ग के आदमियों में मुसलमान होने की प्रेरणा दरबार में इज्जत और ऊंचे ओहदों के लालच से हुआ करती थी।

औरंगजेब ने हजारों मन्दिर नष्ट किये - इसके बाद मुगल खानदान का आखिरी आदमी औरंगजेब आया। उसने अपने शासन की शुरुआत अपने पिता को जेलखाने में डाल कर की।

उसने हिन्दुओं पर जुल्म करने की नीति जानबूझकर अपनायी। उसने हिन्दुओं पर जजिया टैक्स फिर लगा दिया। जहॉं तक हो सका हिन्दुओं से सब अधिकार छीन लिए । जिन राजपूत सरदारों ने अकबर के वक्त में इस राजघराने की मदद की थी उन्हीं को उसने नाराज करके राजपूतों से लड़ाई मोल लेली। उसने हजारों हिन्दू मन्दिरों को बराबर करवा दिया और पुराने जमाने की कितनी ही इमारते धूल में मिला दी गई। (देखें- विश्व इतिहास की झलक, पं. जवाहर लाल नेहरू)

 

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वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
धार्मिक शंका समाधान - प्रश्नों के उत्तर
Ved Katha Pravachan - 26 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

 

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