Call Now : 9302101186, 9300441615 | MAP
     
Arya Samaj Indore - 9302101186. Arya Samaj Annapurna Indore |  धोखाधड़ी से बचें। Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage Booking और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी अन्नपूर्णा इन्दौर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्दौर में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी के अतिरिक्त इन्दौर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Bank Colony Annapurna Indore is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Annapurna Indore is the only Mandir controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Indore. We do not have any other branch or Centre in Indore. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
arya samaj marriage india legal
all india arya samaj marriage place

पाकिस्तान को एक दिन पहले मिली आजादी हिन्दुओं का विनाश कर गई

भारत को दो भागों भारत और पाकिस्तान में विभाजित करने का प्रस्ताव पारित हो गया था । बटवारे के बाद सेना, रेल, बैंक का भी बटवारा तय हो गया था। दोनों देशों के एक वायसराय लार्ड माउण्टबेटन बनाये गये थे। कॉंग्रेस की ओर से अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने विभाजन पर हस्ताक्षर कर दिये थे। जब विभाजन का प्रस्ताव मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना के समक्ष लाया गया तो उन्होंने इस पर आपत्ति ली। जिन्ना का कहना था कि लार्ड माउण्टबेटन चाहे भारत के वायसराय हों, आजाद पाकिस्तान का प्रथम वायसराय मैं मोहम्मद अली जिन्ना बनूँगा। दूसरा संशोधन जिन्ना का यह था कि आप जिस तारीख को चाहें भारत को आजादी सौंप दें, किन्तु पाकिस्तान को आजादी मात्र एक दिन पहले घोषित कर सौंपनी होगी।

ये कोई ऐसी शर्तें नहीं थी जिन पर अड़ा जाये। जिन्ना की दोनों शर्तें स्वीकार हो गईं। भारत को 15 अगस्त 1947 की रात बारह बजे आजादी सौंपना तय हुआ, तो उसके एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को आजाद पाकिस्तान की सत्ता जिन्ना को सौंपना तय हो गया।

विभाजन की चर्चाएँ पिछले कुछ महीनों से चल रही थीं। पंजाब, बंगाल के जिलों को हिन्दु-मुसलमान जनसंख्या के आधार पर विभाजित करना था। फ्रंटियर (उत्तर-पश्र्चिम सीमा प्रान्त) में सत्ता कांग्रेस के हाथों में थी तो प्रजा बहुसंख्यक मुसलमान थी। वहॉं जनगणना के आधार पर फैसला होना था। कांग्रेस आजाद भारत में मन्त्री मण्डल के नामों पर माथा पच्ची कर रही थी तो जिन्ना भावी मजबूत बड़े पाकिस्तान निर्माण के लिये शतरंज के मोहरे बिछा रहा था। जिन्ना ने अखण्ड भारत के मुसलमान प्रशासनिक अधिकारियों की सूची तैयार कर ली थी और उनकी स्थापना के लिये पत्र तैयार कर लिये थे।

सेना का विभाजन - आश्र्चर्य की बात थी कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी (अँग्रेजों) को भारत से भगाने के लिये जिन बलोच रेजिमेण्ट, पख्तून रेजिमेण्ट, पठान रेजिमेण्ट, पंजाब रेजिमेण्ट ने 1857 की लड़ाई में विद्रोह का झण्डा उठाया था,उन्होंने पाकिस्तान को सेवाएँ देने की घोषणा कर अपनी छावनियों के हथियार और ट्रक ले पाकिस्तान का रुख किया था और 1857 में जो हिन्दू मार्शल कौमें मुगल तख्त के विरुद्ध (बहादुरशाह जफर) अँगे्रजो के साथ थीं उन सिख रेजिमेण्ट, जाट रेजिमेण्ट, गोरखा रेजिमेण्ट, राजपूत रेजिमेण्ट, मराठा रेजिमेण्ट, महार रेजिमेण्ट, कुमायुं रेजिमेण्ट, मद्रास रेजिमेण्ट के जवानों ने भारत को अपनी सेवाएँ देने की घोषणा कर दी थी।

पूर्व में बंगाल और दक्षिण में मद्रास से चले मुसलमान फौजियों के ट्रकों का काफिला जैसे ही राजस्थान पंजाब की सीमाओं पर पहुँचा, यहॉं हिन्दु-मुस्लिम दंगे भड़क चुके थे। मुसलमान फौजियों ने मार्ग के हिन्दू गांवों पर अन्धाधुन्ध फायरिंग कर पाकिस्तान की ओर बढाना जारी रखा। कुछ मुसलमान फौजी गिरफ्तार भी किये गए। (पटेल पत्र व्यवहार खण्ड-1, पृष्ठ 473)

पाकिस्तान के पुलिस थानों पर कट्टर पुलिस थानेदारों की नियुक्ति हो चुकी थी। उन्हें आदेश था कि लायसेंसधारी हिन्दुओं के हथियार थाने पर जमा करवा लिये जायें। इस प्रकार जिन्ना ने हिन्दुओं को प्रति-आक्रमण ही नहीं प्रतिरक्षा करने से भी पंगु बना दिया। समस्त हिन्दू ट्रांसपोर्ट वालों के ट्रक जप्त कर थाने के बाहर खड़े करवा लिये गये। हिन्दुओं के भागने का साधन भी छीन लिया गया। रह गया था भागने का साधन रेलें, तो उन्हें भी प्रत्येक स्टेशन पर रोक कर डिब्बों की तलाशी ले हिन्दुओं का नगदी, जेवर, सोना-चॉंदी और जवान लड़कियॉं, बहुएँ छीनीं जाने लगीं। 15-16-17 अगस्त को तो अति हो गई । हिन्दुओं की लाशों से भरी ट्रेनें अमृतसर स्टेशन पहुँची जिन पर हिन्दुओं के खून से लिखा था खून बहाना हमसे सीखो । गॉंवों-कस्बों में मुल्ला-मौलवी हिन्दुओं का सामूहिक धर्मान्तरण करवाने लगे। हिन्दू कहीं फिर बदल न जायेंं इसलिये हिन्दुओं की कुँवारी लड़कियों के निकाह मुसलमानों से जबरन करवाने लगे। डेरा इस्माइल खॉं के मनकी का मुल्ला हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर रहा था। हिन्दुओं के शिष्ट मण्डल ने स्वेच्छा से सामूहिक रूप से इस्लाम स्वीकार किया। अँगरेजों ने मनकी के मुल्ला को 10 मार्च 1947 को हिन्दुओं के नर संहार के आरोप में गिरफ्तार किया। मुसलमान बनाये जाने वाले और हिन्दू महिलाओं के जबरन निकाह पढवाये जाने वाले साधारण हिन्दू ही नहीं थे, भारत के भावी प्रधानमन्त्री श्री इन्द्रकुमार गुजराल की शादीशुदा बुआ को भी मुसलमान छीन कर ले गये जो कभी नहीं लौटी। कॉंग्रेस के नेता आचार्य कृपलानी के चार भाई और एक बहन सपरिवार मुसलमान बना लिये गये। (पटेल पत्र व्यवहार भाग-1 पृष्ठ 468, 440, 441, 434, 436, 437)

जोधपुर रियासत का एक चौथाई भाग सिन्ध में पड़ता था। अमरकोट छोर, जिन्दो, नवहाट, मीठी, डिप्लो, अलीबन्दर, नगर पारकर, वीरवाह, पीलू, रामकोट (इस्लामकोट), तार, अहमदरिंद, खईसर, खोकरापार ये जोधपुर रियासत के आधीन सोढों, भाटियों, जाड़ेजा ठाकुरों के गॉंव व ठिकाने थे। 14 अगस्त 1947 को इन ठिकानेदारों की गढी-कोटों पर पाकिस्तानी झण्डे लहरा दिये गये। यहॉं ईस्ट इण्डिया कम्पनी और जोधपुर महाराज मानसिंह के बीच दिनांक 15 मई 1847 को (1857 गदर के 11 वर्ष पूर्व) जो सन्धि हुई थी उसको अक्षरश: पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है-

अहदनामह नवम्बर 41 - तर्जमह खत जोधपुर की तरफ से साहिब पोलिटिकल एजेण्ट जोधपुर के नाम तारीख 15 मई 1847 ई.। मैंने आपकी चिठ्ठी मुवर्रिखह 6 मार्च गुजिश्तह बाबत इत्तिला इस बात के कि उमरकोट एवज रु. 115000 सवार खर्च में से रु. 1000 सालानह हर साल कम किये जायेंगे, महाराजा साहिब के हुजूर में गुजरानी महाराजा फर्माते हैं कि उमरकोट हमारा है और हमारा दावा उमरकोट पर साफ और सहीह है, इसको साहिब बहादुर भी खूब जानते हैं। जब तक उमरकोट गवर्मेंट अंग्रेजी के कब्जे में रहेगा, उस वक्त भी हम उमरकोट को अपना समझेंगे और जब गवर्मेंट अंग्रेजी उसको अलह्‌द करना चाहेगी तो हम जानते हैं कि वह हमको देगी और किसी दूसरे को न देगी, इस वास्ते कि उमरकोट हमारा है और हमको मिलना चाहिये। राजस्थान में जमीन का हक्क बहुत बड़ा समझा जाता है, और जिस रोज उमरकोट हमको वापस दिया जायेगा, वह दिन बहुत मुबारिक और खुश समझा जायेगा। और यह भी फर्माते हैं कि अगर रु. 10000 सालानह रू. 108000 में से जो गवर्मेंट अंग्रेजी को बतौर खिराज दिया जाता है, मुज्जा दिया जायेगा, तो यह रुपया जमीन के एवज है, और खिराज भी जमीन की बाबत दिया जाता है । इस वास्ते यह रुपया खिराज के रुपयों में से मुज्जा होना चाहिये।

तर्जमह सहीह है

दस्तखत-एच.एच. ग्रेटहेड

पोलिटिकल एजेण्ट

गवर्नर जनरल ने मंजूर और तस्दीक किया,

ता. 17 जून सन्‌ 1847 ई.

(श्यामलदास का वीरविनोद पृष्ठ 894-895)

अहदनामे (सन्धि पत्र) में उल्लेखित अमरकोट (उमरकोट) का इलाका जोधपुर महाराजा मानसिंह ने अँगरेजों को खिराज के बदले में दिया था ताकि यहॉं की राजस्व वसूली से वे अपना खिराज प्राप्त करें और जो खिराज कम्पनी को नकद दिया गया है, उसमें से 1000 रु. नगदी प्रतिवर्ष जोधपुर को मुजरा दें। सन्धिपत्र में यह भी लिखा है कि जब कम्पनी या अंगरेज इलाका छोड़ेंगे तो उमरकोट जोधपुर को वापस मिलेगा। जब तक उमरकोट अंगरेजों के पास रहेगा वह जोधपुर का ही माना जाएगा। ऐसे ही होलकरों ने खिराज के बदले महू तहसील और रेलवे पार का छावनी का इलाका अँगरेजों को दिया था।

नेहरू जी भारत के प्रधानमन्त्री थे। उन्होंने पाकिस्तान से यह इलाका मांगना था, नहीं मांगा। जब 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध में जयपुर महाराजा कर्नल भवानीसिंह ने अपने छाताधारी (पैराशूटर्स) सैनिकों के साथ सिन्ध में उतर इस पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया था। वह भी बाद में लौटा दिया, क्यों? जोधपुर रियासत के इस सिन्ध प्रदेश में  60% आबादी हिन्दू राजपूतों, मेघवालों और भीलों की थी। सीमा आयोग के अध्यक्ष सर सिरिल रेड क्लिफ अंग्रेज अधिकारी की जानकारी में यह बात आती तो सिन्ध का उमरकोट और थलपारकर जिला आज भारत में होता और सिन्ध से भागा हिन्दू वहीं बस जाता।

बटवारे के समय सीमा आयोग ने यह व्यवस्था दी थी कि अभी जो इलाके भारत या पाकिस्तान में शामिल किये जा रहे हैं, वहॉं के नागरिकों की इच्छा जानकर वे लौटाये भी जा सकते हैं। इस बात को भी नहीं देखा गया, नेहरू जी का मन तो मन्त्रीमण्डल बनाने में और स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के रूप में लाल किले पर झण्डा फहराने की योजना बनाने में लगा था।

इधर तो हमारी असावधानी से जोधपुर रियासत का उमरकोट पाकिस्तान में रह गया। इधर दक्षिण मध्य सौराष्ट्र की मुस्लिम रियासत जूनागढ नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी, साथ ही काठियावाड़ की जो राजपूत रियासतें जूनागढ को खिराज देती थीं (अँगरेजी राज में भी)  उन पर भी पाकिस्तान में शामिल होने का दबाव बनाया गया। जिन्ना तो पाकिस्तान की सीमा महाराष्ट के नन्दूरबार और पूर्व में राजपूत रियासत झाबुआ तक फैलाना चाहता था। इसके लिये जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, बड़ौदा के राजाओं को पाकिस्तान में शामिल होने के न्यौते भेजे गये। भोपाल नवाब के मार्फत होलकर महाराज इन्दौर को भी न्यौता गया। यदि ये राजपूत राज्य पाकिस्तान का प्रस्ताव स्वीकार लेते तो पाकिस्तान की सीमा अरावली पर्वत के लेकर महाराष्ट्र के नन्दूरबार और म.प्र. के झाबुआ तक विस्तृत हो जाती। आज के पाकिस्तान से ठीक दो गुना प्रदेश। इन्हें न तो नेहरू रोक सकते थे न ही सरदार पटेल। राजपूत राजाओं की इस देश भक्ति का मूल्यांकन कौन करेगा? यदि जोधपुर महाराज पाकिस्तान में विलय स्वीकार लेते तो राजपूत रियासत कच्छ का पूरा सम्पर्क भारत से कट जाता, कच्छ की 60% जनता मुसलमान थी, कच्छ का पाकिस्तान में विलय नहीं रुकता।

भारत के हिन्दू राजाओं को मूर्ख बनाने के लिये जिन्ना ने पाकिस्तान के स्वतन्त्रता दिवस पर एक धर्म निरपेक्ष पाकिस्तान पर भाषण दिया। इसी के लपेट में आ गये भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष श्री लालकृष्ण लाडवाणी और जिन्ना की मजार पर जा उन्होंने जिन्ना को धर्म निरपेक्ष घोषित कर दिया। यही हाल हुआ भाजपा नेता और सांसद श्री जसवन्तसिंह का, उन्होंने तो जिन्ना के महिमा मण्डन पर एक पूरी पुस्तक ही लिख डाली। ये दोनों सज्जन कभी जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन में मारे गये लाखों हिन्दुओं के कत्ल का हिसाब भी इतिहास में टटोल लेते। आज अडवाणी जी के जिन्ना समर्थन का कोई जवाब भाजपा के पास नहीं है। संसद में कॉंग्रेसी कह रहे हैं कि कॉंग्रेसनीत केन्द्र सरकार में जितनी जानें कश्मीर में सैनिकों और देशभक्तों की गई हैं उनसे कई गुना अधिक जानें भाजपानीत केन्द्र सरकार के समय गई हैं। कोई जवाब नहीं?

आसाम पर कब्जे की योजना - सन्‌ 1905 में प्रसिद्ध बंग भंग के समय बंगाल के मुस्लिम बहुल पूर्व बंगाल को आसाम के साथ जोड़कर एक नए मुस्लिम बहुल पूर्वी भारत का निर्माण हो गया था। बंगभंग हिन्दुओं के प्रबल आन्दोलन से समाप्त हुआ। इसकी कसक आज भी दारुल इस्लाम समर्थक मुसलमानों के मन में है। जिन्ना की निगाह भी इस पर लगी थी। कूच बिहार, टिपेरा, त्रिपुरा, मणिपुर की हिन्दू रियासतें तथा चिटगॉंव का 97% बौद्ध इलाका जिन्ना हड़पना चाहता था। आसाम तो अपने आप भारत से कट जाता।

जिन्ना ने बंगाल की योजना 15/11/1946 से आजादी के 10 माह पूर्व प्रारम्भ कर दी। मुस्लिम बंगाल और आसाम के बीच में हिन्दू रियासत टिपेरा (कोमिल्ला) और त्रिपुरा पड़ती थीं। मुस्लिम बहुल नोआखाली के बाद चिटगॉंव  का 97% बौद्ध बहुल क्षेत्र था, यहॉं मुसलमान केवल 3% ही थे। यदि कूच बिहार की हिन्दू रियासत पाकिस्तान से मिल जाती तो पूरा आसाम ही कट जाता। कूच बिहार के उत्तर में भूटान था और दक्षिण में बंगाल। सीमा आयोग का अधिकारी सर रेड क्लिफ जिन्ना से मिला हुआ था और वायसराय सर माउण्टबेटन भी पाकिस्तान का सहयोगी था। इनके सहयोग से सीमा आयोग जिन्ना के अनुकूल फेर बदल कर सकता था।

हुआ भी यही.... .जिन्ना ने विचार किया यदि कूच बिहार का राजा पाकिस्तान में शामिल नहीं हुआ तो भारत से आसाम का सम्बन्ध कैसे तोड़ेेगे। उसने आसाम को मुस्लिम बहुल बनाने की योजना प्रारम्भ की।

आसाम के मुख्यमन्त्री का तार - दि. 19 मार्च 1947 को आसाम के मुख्यमन्त्री गोपीनाथ बारडोलोई ने गृहमन्त्री (अन्तरिम सरकार) सरदार पटेल को एक तार भेजा। उन्होंने लिखा- हथियारों से लैस मुस्लिम नौजवान (खाकसार) हजारों की संख्या में आसाम में घुस आये हैं। बंगाल-आसाम की सीमा पर हथियार बन्द मुुुसलमानों का जमाबड़ा बढ रहा है। धुबरी सबडिविजन के पास मुसलमानों के प्रशिक्षण कैम्प लग गये हैं। मुसलमानों ने घुस कर जमीनों पर कब्जा करना शुरु कर दिया है। हमारे पास इतने पुलिस वाले नहीं हैं जो इन्हें रोक सकें। प्रार्थना है कि कम से कम एक ब्रिगेड सेना तुरन्त भेजी जाए (पटेल पत्र व्यवहार भाग-1 पृष्ठ 433)

पटेल का पत्र लार्ड माउण्टबेटन को - दि. 20-04-1947 को सरदार पटेल ने वायसराय लार्ड माउण्टबेटन को लिखा कि आसाम में हिन्दुओं को समाप्त किया जा रहा है। आसाम पर जबरन कब्जा करने के लिये मुसलमानों ने संगठित प्रयास शुरू कर दिये हैं। मुस्लिम लीगी इन्हें रोकते नहीं और इसके विपरीत गान्धी जी बिहार में मुसलमानों की रक्षा व हिन्दुओं पर गोली बारी (स्वगृहीत मिशन गान्धी) करवाने में व्यस्त हैं। हजारों स्त्रियॉं और बालक इनका शिकार बने हैं। (पटेल पत्र व्यवहार भाग-1 पृष्ठ 442)

बंगाल के पुलिस इन्सपेक्टर जनरल एस.जी.टेलर ने रिर्पोट भेजी कि हम आक्रमणकारी मुसलमानों पर कड़ी कार्यवाही नहीं कर सकते। बंगाल की लीगी सरकार ने हमारे हाथ बान्ध रखे हैं।

गोरखा पुलिस बरखास्त - बंगाल की हमलावर मुस्लिम भीड़ का साथ मुसलमान सिपाही दे रहे थे। बंगाल के गोरखा सिपाहियों ने यह देख मुस्लिम सिपाहियों पर हमला कर दिया और कुछ को मार डाला। बंगाल के गोरखालैण्ड आन्दोलन को इसी सन्दर्भ में देखना चाहिये। बंगाली हिन्दू पुलिस वाले हिन्दुओं की हत्या मौन खड़े देखते रहते थे। किन्तु हिन्दू गुरखा सिपाही न्याय का पक्ष ले अत्याचार कर रहे अपने मुसलमान पुलिस वाले को मार देता था। गुरखा नस्ल में (मंगोलाइड) भाषा में क्षेत्र में, बंगालियों से अलग है । वह अपने प्रान्त में गौहत्या नहीं चाहता। सेना-पुलिस में भर्ती होते समय उसकी शर्त होती है कि हिन्दू पर गोली नहीं चलायेगा। गोरखाओं को पुलिस नौकरी से निकाल दिया और तेजी से नई पुलिस भर्ती (मुसलमानों की) प्रारम्भ कर दी गई । यह बात लार्ड माउण्टबेटन ने अपने दि. 13 मई 1947 को सरदार पटेल को लिखे पत्र में बताई। (पटेल पत्र व्यवहार भाग-1 पृष्ठ 446)

जब सीमा आयोग का अध्यक्ष रेड क्लिफ हिन्दू-मुसलमान बहुल जिलों की सूची बना रहा था, तब जिन्ना ने टॉंग अड़ा दी। कहा कि आसाम को भी इसमें शामिल करें, आसाम के कई जिले मुस्लिम बहुल हैं। आसाम की मतदाता सूचियों में तो हिन्दू थे, नये जबरन कब्जा जमाये मुसलमानों के नाम नहीं थे । जिन्ना की सलाह पर सीमा आयोग ने आसाम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराया। हिन्दुओं को मतदान करने से रोका गया, फिर भी एक-दो तहसीलों को छोड हिन्दू बहुमत में थे। जिन्ना को सहयोग करते हुए माउण्टबेटन और रेड क्लिफ ने कहा कि अभी तो पूरा जिला पाकिस्तान को सौंप देते हैं, बाद में जॉंच कर हिन्दू तहसीलें आसाम में मिला दी जायेंगी। बाद में कौन लौटाता है जमीन? सिलहट जिला पाकिस्तान में चले जाने से भारत का आसाम से सम्पर्क टूट गया और 15 अगस्त की प्रात: पाकिस्तानी सेना ने ब्राह्मण बारिया और कोमिल्ला (टिपेरा) की हिन्दू जागीरों-रियासतों पर कब्जा कर लिया। त्रिपुरा भी इसलिये बचा कि सरदार पटेल ने सेना की एक टुकड़ी वहॉं भेज दी थी। आज बंगाल से आसाम जाने का हमारा रेल और सड़क मार्ग रियासत कूच बिहार होकर ही है। (पटेल पत्र व्यवहार भाग-1 पृष्ठ 180)

चिटगॉंव - पाकिस्तान की आजादी के एक दिन पूर्व सरदार पटेल ने लार्ड माउण्टबेटन को दि. 13 अगस्त 1947 को एक पत्र लिखा- चिटगॉंव के बौद्धों का एक प्रतिनिधि मण्डल आज सुबह मुझसे मिला, उन्होंने भय प्रकट किया कि सीमा आयोग द्वारा चिटगॉंव जिला पाकिस्तान में मिला दिया जायेगा।

सरदार ने लिखा कि सीमा आयोग का अध्यक्ष रेड क्लिफ अपनी अधिकार मर्यादा का इतना गम्भीर उल्लंघन करेगा यह समझ से परे है। 97% गैर मुसलमानों को पाकिस्तान में मिलाना अनुचित है। यहॉं के सारे निवासी भारत के साथ रहना चाहते हैं। यहॉं आयोग ने जनमत संग्रह कराना भी उचित नहीं समझा।

हुआ भी वही....। 15 अगस्त की प्रात: चिटगॉंव के बौद्धों ने कलेक्टर कार्यालय पर तिरंगा फहरा दिया, जिसे ढाका से भेजी गई पाकिस्तानी पुलिस ने फेंक कर पाकिस्तानी झण्ड़ा लगा दिया।

दुखद पक्ष - भारतीय इतिहास का यह दुखद पहलू है कि जहॉं जिन्ना बंगाल आसाम में हिन्दुओं का सफाया कर मुस्लिम आबादी बढा रहा था। वहॉं हमारे पूज्य गान्धी जी बिहार के मुसलमानों की रक्षा के लिये हिन्दुओं पर गोली चलवा रहे थे। हिन्दू महिलाएँ और बच्चे भी इस गोलीबारी से बक्षे नहीं गये। हमारे नेहरू जी को भी न तो हिन्दुओं के जानमाल की चिन्ता थीं न भारत भूमि पर जिन्ना द्वारा किये जा रहे कब्जे की। हास्यापद स्थिति यह थी कि इस मारकाट के माहौल में नेहरू जी अपने मन्त्रीमण्डल की नियुक्ति में लगे थे। शायद यही सब सोचकर भारत के गृहमन्त्री सरदार पटेल ने नेहरू के साधारण पत्र को सहेज कर अपनी पुस्तक में स्थान दिया है।

नेहरू का पत्रकुछ हद तक औपचारिकताएँ निभाना जरूरी होने से मैं आपको नये मन्त्रीमण्डल में सम्मिलित होने का निमन्त्रण देने के लिये यह लिख रहा हूँ। इस पत्र का कोई महत्व नहीं है। क्योंकि आप तो मन्त्रीमण्डल के सबसे सुदृढ स्तम्भ हैं। - जवाहरलाल

1971 के भारत-पाक युद्ध में विजयी भारतीय सेना ने समस्त पूर्वी पाकिस्तान पर अधिकार कर लिया था और पाकिस्तान के 93 हजार सैनिक हमारी कैद में थे। हमें तुरन्त सिलहट का जिला, चिटगॉंव का जिला, ब्राह्मण बारिया और कोमिल्ला की हिन्दू जागीरें आसाम में मिला देनी थी। बचे दो तिहाई बंगाल के भी दो भाग कर 1 करोड़ 90 लाख बंगाली हिन्दू शरणार्थियों को एक भाग सौंप कर पाकिस्तान से कह देना था कि तुम्हारा बचा बंगाल चाहिये और 93 हजार कैदियों की मुक्ति चाहिये तो कश्मीर तुरन्त खाली करो।

कई अति बुद्धिमान व्यक्ति राष्ट्रसंघ का हवाला देकर कहेंगे कि किसी दूसरे देश पर कब्जा करना आसान नहीं है। उन्हें ध्यान में रखना चाहिये कि 1965 के कच्छ युद्ध के समय कच्छ रण के उस पार की सारी भारत भूमि और 10-12 गॉंव, जिला अमृतसर के रावी नदी पार के 7 गॉंव, जम्मू का छम्ब रेल्वे स्टेशन और जौरियॉं का कस्बा जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था उसे हम आज तक वापस नहीं पा सके, क्या कर लिया राष्ट्रसंघ ने पाकिस्तान का। यह कायरों की सोच है, वीरों की सोच है नहीं है यह। जो वीर है वही धरती पर राज करेगा.... वीर-भोग्या-वसुन्धरा। - रामसिंह शेखावत

 

जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
दिव्य मानव निर्माण की वैदिक योजना
Ved Katha Pravachan - 28 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

 

Hindu Sansaar, Hindu Vishwa, Hindutva, Ved, Vedas, Vedas in Hindi, Vaidik Hindu Dharma ,Ved Puran, Veda, Upanishads, Rigveda, Yajurveda, Samveda, Atharvaveda, Theory of Karma, Vedic Culture, Sanatan Dharma, Vedas explain in Hindi,Ved Mandir,Gayatri  Mantra, Mantras , Arya Rishi Maharshi , Hindu social reform , Hindu Matrimony Indore – Jabalpur – Bhopal - Gwalior Madhya Pradesh, Ved Gyan DVD, Havan for Vastu Dosh Nivaran, Vastu in Vedas, Vedic Vastu Shanti Yagya, Vaastu Correction Without Demolition, Vishwa Hindu, Hindu History,  Acharya Dr. Sanjay Dev, Hindi Hindu Matrimony Haryasna – Punjab - Uttar Pradesh – Uttarakhand – Bihar, हिन्दुत्व, हिन्दू धर्म और उसकी विशेषताएं, वेद, वैदिक धर्म, दर्शन, कर्म सिद्धान्त, आचार्य डॉ.संजयदेव

pandit requirement
Copyright © 2022. All Rights Reserved