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Arya Samaj Indore - 9302101186. Arya Samaj Annapurna Indore |  धोखाधड़ी से बचें। Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage Booking और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी अन्नपूर्णा इन्दौर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्दौर में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी के अतिरिक्त इन्दौर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Bank Colony Annapurna Indore is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Annapurna Indore is the only Mandir controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Indore. We do not have any other branch or Centre in Indore. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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विपत्ति में धैर्य, सुख में प्रभु स्मरण

भूकम्प, सुनामी, बाढ आदि से आने वाली विभीषिकाएँ सारे विश्व को झकझोरकर गहन शोक में डुबो देती हैं । इन हृदयविदारक घटनाओं का कारण क्या हो सकता है ? यह एक पेचीदा प्रश्न है और इसके साथ ही उठ रहे हैं कुछ और महत्वपूर्ण प्रश्न । क्या मानव की यही नियति है ? क्या मृत्यु पर विजय पाई जा सकती है ? क्या आपदाओं से उबरा जा सकता है  या फिर निरंतर इनसे जूझते हुए इसी प्रकार डर-डरकर जीना होगा ?

भूकम्प,सुनामी,बाढ आदि के आने का कोई कुछ भी कारण बताए, एक बात तय है कि इसके लिए हम सब उत्तरदायी हैं । स्वार्थवश किए गए हमारे ही कार्यों और गतिविधियों के यह दुष्परिणाम है । वेद और शास्त्रों में इन प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर दे दिया गया है ।

सब प्रश्नों का उत्तर- ईश्वर के विधान में उसकी श्रेष्ठतम कृति मनष्य के लिए पूर्णत: निर्भीक होकर स्वच्छंद विचरण करने की पूरी व्यवस्था है । मनुष्य की सारी समस्याओं, सारे प्रश्नों का उत्तर विद्यमान है । वेद कहता है- ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत। (अथर्ववेद 11.5.19) अर्थात्‌ ब्रह्मचर्य रूपी तप से दिव्य पुरुषों ने मृत्यु को जीत लिया तथा तमेव विद्वान न विभाय मृत्यो:। (अथर्ववेद 10.8.44) अर्थात्‌ ईश्वर को जान लेने से मृत्यु का भय नहीं रहता ।

ईश्वर का संदेश हमें बार-बार मिलता रहता है । तरह-तरह से वह हमें समझाने का प्रयत्न करता रहता है । वह नहीं चाहता कि हम किसी भी प्रकार से दु:ख पाएं। वह हमारा सहायक है । हर समय वह हमारी सहायता के लिए उत्सुक रहता है । आपदाएं न आएं, यह तो संभव नहीं, परन्तु किसी भी स्थिति में हमें दुखी न होना पड़े, यह संभव है ।

सुख-दु:ख भी धन, सामान, सम्पत्ति की तरह कमाने-जोड़ने तथा खर्च किये जाने वाले तत्व हैं । जिस प्रकार शारीरिक धर्म निभाने से बिमारी निकट नहीं आ पाती, उसी प्रकार सामाजिक एवं आत्मिक धर्म निभाने से किसी भी प्रकार की विपदा से हम बच सकते हैं । धर्मो रक्षति रक्षित:-जो धर्म की रक्षा करता है उसकी रक्षा धर्म अर्थात्‌ ईश्वर करता है, ईश्वर के साम्राज्य में हिसाब सीधा-सादा और स्पष्ट रहता है,इस हाथ दो,उस हाथ लो ।

सत्याचरण- सत्याचरण के सामने दु:ख और विपत्तियां टिक नहीं सकतीं । दु:खों से निवृत्ति पाई जा सकती है । वह सत्य ज्ञान जिससे हम दु:खों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, सरल है, सुलभ है तथा प्रत्येक साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति भी उसे आसानी से समझ सकता है ।

यह एक विडम्बना ही है कि इतना सब कुछ सुलभ होने पर भी हम विपरीत दिशा  में दौड़े चले जा रहे हैं । तब दु:खों से हम कैसे छूट सकते हैं ? ईश्वर ने तो हमें निर्भीक बनाया था । यदि हम सुपथ छोड़, भीरु बनकर दु:ख सागर में गोते खाते रहें तो इसमें विधाता का क्या दोष ?

दु:खों का मूल कारण अज्ञान में किए गए हमारे पाप कर्म ही हैं तथा इनसे निपटने का एक ही उपाय है- ईश्वर की आज्ञा में रहना । ईश्वर कहता है-""तुम मेरी आज्ञा में रहो, तुम्हारी सुरक्षा तथा तुम्हारे लिए सुख की व्यवस्था मैं स्वयं करूंगा ।''

मेहनत की राह चुनकर अपना सारा ध्यान कर्तव्य पर लगाएं । यही पूर्ण निर्भयता का मंत्र है । यही हर स्थिति में निश्चिन्तता का सूत्र है । इसके बिना स्थायी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती और आए दिन चिंता, डर, घबराहट तथा तरह-तरह की परेशानियां आसपास मंडराती रहेंगीं। ईश्वर की सुरक्षा में रहें । उसकी सुरक्षा पूर्ण है, अभेद्य है। ईश्वर का सुरक्षा कवच पहनिए । इसकी तीन सुरक्षा पंक्तियां इस प्रकार हैं -

कष्ट सहन का अभ्यास- सुरक्षा की पहली (अग्रणी) पंक्ति है- सुख के अनुपात में दु:ख अधिक सहना । यदि हम पुरुषार्थ करते हैं तथा सुख भोग की मात्रा हमारी की गई मेहनत से कम आंकी जाती है, तब हम पर विपत्तियों का आना सम्भव नहीं होता ।

वैसे तो पहली सुरक्षा पंक्ति अभेद्य है और अपनी राह में सुधार लाते हुए सदैव आशान्वित  रहना हमारा कर्तव्य है। फिर भी हमें हर स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए और इसके लिए हमें दूसरी तथा तीसरी सुरक्षा पंक्तियों को भी तैयार कर लेना चाहिए। जहॉं पहली सुरक्षा पंक्ति सीधे-सादे समीकरण पर आधारित है, वहॉं दूसरी तथा तीसरी पंक्तियों का आधार शारीरिक एवं आत्मिक शक्तियां हैं ।

सुरक्षा की दूसरी पंक्ति है- शरीर को दोषमुक्त करना । हम जानते हैं कि जब हम बीमार होते हैं और हमारा पेट खराब होता है, तब छोटी-छोटी चिंताएं हमें घेर लेती हैं तथा छोटी-छोटी घटनाओं से हम घबरा जाते हैं । शरीर में व्याप्त विष हमारी सहनशक्ति को कम कर देते हैं । जैसे ही हमारा शरीर विषमुक्त होता जायेगा, हम कठिन परिस्थितियों में भी नहीं घबरायेंगे । अनेक साहसी व्यक्ति संसार में इस तथ्य के जीते-जागते प्रमाण हैं ।

सुरक्षा की तीसरी पंक्ति है- आत्मा के स्तर को ऊँचा उठाना। ईश्वर ने यह मार्ग केवल मनुष्य की सीधी सहायता के लिए ही बनाया है । कैसा भी दु:ख हो, कैसी भी विपत्ति हो, आत्मिक बल से हम सब कुछ सहन कर सकते हैं । अनेक वीरों ने इसके ही सहारे कितने कष्ट हंसते-हंसते सहन कर लिए तथा अन्त में देश पर अपना जीवन भी बलिदान कर दिया ।

आपत्ति के समय- शांत रहें । स्थिति को संभालने का हर संभव प्रयत्न करते रहें । जब कुछ न किया जा सके, तब केवल ईश्वर का ध्यान करें । ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित होकर उसे अपने समीप महसूस करें तथा उस पर सब कुछ छोड़कर निश्चिन्त हो जायें । उसे अपना कार्य कर लेने दें । मानसिक शक्ति का उपयोग करते हुए इन विचारों को दृढ करें । सारे संसार से कहीं अधिक प्रभावशाली ईश्वर का साथ है । दु:ख जो हमारे हिस्से में है, वह हमें लेना ही होगा। सुख जो हमारे भाग्य में है, वह हमें मिलकर ही रहेगा। जहॉं तक हो सके, मन में प्रसन्नता के भाव लाने का प्रयत्न करें । कहें कि हे ईश्वर ! तेरी लीला निराली है । वर्तमान में जियें। आगे-पीछे की चिन्ता न करें । ईश्वर हर समय हमारा भला चाहता है तथा वह कभी गलती नहीं करता । इसलिए जो वह दे, उसे उसकी आज्ञा मानकर स्वीकार करें ।

जब जान पर बन आये,तब- कभी  न कभी तो हम सभी को मृत्यु का सामना करना ही पड़ेगा । इससे कोई बच नहीं सकता ।  जिस प्रकार प्रत्येक कार्य की पूर्व तैयारी हम करते हैं, उसके लिए सारा सामान जुटाते हैं, उसी प्रकार इसकी भी पूर्व तैयारी हमें कर लेनी चाहिए । कहा भी गया है - चलो झूमते सर पे बांधे कफन । यह निश्चय मन में कर लें कि चाहे कुछ भी हो, हम हंसते हुए प्राण त्यागेंगे । जब मृत्यु का सामना हो, तब अपना सब कुछ ईश्वर को समर्पित करके केवल उसी का स्मरण करें ।

सुख के दिनों में- सहने लायक कष्ट सहने की वृत्ति अपनाएं । आमतौर पर हम अत्यधिक सुखभोग की अवस्था में रहते हैं । आपत्ति के समय से तुलना करने पर पता चलता है कि हम कितने आराम में रहते हैं, तब थोड़े सुख में भी हमें स्वर्गीय आनन्द का अनुभव होगा । इसलिए प्रत्येक सुखभोग से पहले मेहनत तथा सहनीय कष्ट उठाने का नियम बना लें । सारा दिन मौज मस्ती और ऐश आराम में रहना तथा मेहनत से कतराना अपना ही अहित करना है। जीवन में आने वाली कठिनाइयों को हंसते-हंसते झेलें।

पुरुषार्थ करें । जो अपने लिए चाहें, वही सारे प्राणिमात्र के लिए भी चाहें तथा इसके लिए प्रयत्नशील रहें । सबके भले की सोचें, विशेषकर जो आपके आश्रय में हैं, जो निर्बल हैं, गरीब हैं, जो पीड़ित हैं । भोले-भाले बेजुबान जानवरों के बारे में भी सोचें। "इदं न मम' का अभ्यास करें । शरीर से  लेकर सारा साज सामान उसी की सम्पत्ति मानकर चलें ।

आपत्काल को छोड़, नियमित अतिश्रम न करें।  सारे कार्य उसी के हैं, ऐसा ही मान कर चलें। सत्य की खोज सदैव करते रहें । ईश्वर से गहरा तथा संसार से कम सम्बन्ध रखें । ध्यान,जप, योग आदि का अभ्यास करें । यदि प्रात:-सायं आसन में बैठकर ध्यान न कर सकें, तब कोई भी कार्य (जो आदतन होता हो) करते समय तथा आराम के समय जप करें । गायत्री या कोई और मन्त्र गाकर बोलें। ओ3म्‌ या ईश्वर का कोई और नाम बार-बार बोलें। ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना का कोई दोहा या वाक्य दोहरायें ।

मत्रं या शब्द बोलते हुए उसका अर्थ मन में धारण करते जाएं । ईश्वर को स्मरण रखते हुए हर कार्य पूरा ध्यान लगाकर करना भी ध्यान है । ध्यान का अभ्यास जैसे-तैसे बढता जाएगा, वैसे-वैसे निर्भयता आती जाएगी, यहॉं तक कि मृत्यु का डर भी दूर हो जाएगा । जब हम पूरा प्रयत्न करते हैं, तो ईश्वर हमारी प्रार्थना भी सुनता है । इसलिए प्रतिदिन नियमित रूप से ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना एवं उपासना करें । यदि आपने अपने मन को वश में कर लिया है तथा जो कुछ भी आपको करना उचित है, वह आप कर रहे हैं, तब उठिए, मुस्कुराइए और पूरी तरह निर्भय हो कर आगे बढिए । आपकी रक्षा ईश्वर करेगा, आपत्तियां आपको छू भी नहीं सकेंगी । लेखक- देवेन्द्रकुमार बख्शी

 

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