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Arya Samaj Indore - 9302101186. Arya Samaj Annapurna Indore |  धोखाधड़ी से बचें। Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage Booking और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी अन्नपूर्णा इन्दौर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्दौर में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी के अतिरिक्त इन्दौर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Bank Colony Annapurna Indore is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Annapurna Indore is the only Mandir controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Indore. We do not have any other branch or Centre in Indore. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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आयुर्वेद : एक आदर्श चिकित्सा पद्धति

आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति तथा भारत की एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है। वेदों से आयुर्वेद का अवतरण हुआ है और इसे अथर्ववेद का उपवेद माना गया है। विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के सिद्धान्त भले ही अलग-अलग हों, मगर सबका मुख्य उद्देश्य मनुष्य के स्वास्थ्य तथा कल्याण की कामना ही है। स्वस्थ मनुष्य उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता है और रोगी मनुष्य अपने रोग से मुक्ति चाहता है। इस आयुर्वेद शास्त्र का यही सिद्धान्त है और इसका उद्देश्य भी यही है कि स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम्‌ आतुरस्य विकार प्रशमनं च। अर्थात्‌ स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा एवं रोगी व्यक्ति के रोग का शमन।

आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र के सुप्रसिद्ध आचार्य चरक ने आयुर्वेद को शाश्वत कहा है। क्योंकि जब से "आयु' अथवा "जीवन' का प्रारम्भ हुआ है, तब से ही आयुर्वेद की सत्ता आरम्भ होती है। आचार्य सुश्रुत ने कहा है कि प्रजापिता ब्रह्मा ने सृष्टि की उत्पत्ति के पूर्व ही आयुर्वेद की रचना की, जिससे प्रजा उत्पन्न होने पर इसका उपयोग कर सुखी एवं स्वस्थ रहे। आचार्य चरक के अनुसार इस आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र का ज्ञान प्रजापिता ब्रह्मा से दक्ष प्रजापति ने प्राप्त किया। दक्ष प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने प्राप्त किया, जो स्वर्ग में देवताओं के चिकित्सक थे। अश्विनी कुमारों से इन्द्र ने इस ज्ञान को ग्रहण किया। विभिन्न प्रकार के रोगों से आक्रान्त सभी वर्गो के प्राणियों के कष्टमय जीवन से दुखी होकर दयालु महर्षियों ने हिमालय पर्वत के पास एक सभा का आयोजन किया, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि इन्द्र से इस ज्ञान को प्राप्त किया जाये। इस दुष्कर एवं दुसाध्य कार्य के लिए महर्षि भारद्वाज स्वेच्छा से नियुक्त हुये और वहॉं जाकर इन्द्र से कहा कि पृथ्वी लोक में भयंकर व्याधियॉं उत्पन्न हुई है, इनके मन का उपाय बतलायें। इस पर इन्द्र ने भारद्वाज को सूत्र-रूप में ब्रह्म परम्परा से प्रवाहित शाश्वत, त्रिसूत्र तथा स्वस्थातुरपरायण आयुर्वेद का उपदेश दिया। महर्षि भारद्वाज ने यह ज्ञान आत्रेय पुनर्वसु आदि हर्षियों को दिया। महर्षि आत्रेय पुनर्वसु ने पुन: अपने छ: शिष्यों को यह ज्ञान दिया, जिनके नाम क्रमश: अग्निवेश, भेल, जतुकर्ण, पराशर, हारीत एवं क्षारपाणि थे। इन्होंने कालान्तर में अपने-अपने तंत्र अथवा संहिताओं का निर्माण किया। इनमें अग्निवेश तंत्र सर्वप्रथम बना और सबसे अधिक लोकप्रिय भी हुआ। यही अग्निवेश तंत्र वर्तमान में "चरक-संहिता' के नाम से प्रसिद्ध है।

जैसा कि पूर्व में कहा गया है कि आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा एवं रोगी के रोग का प्रशमन करना है। इसके अतिरिक्त धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष नामक पुरुषार्थों की सिद्धि या प्राप्ति आयु से ही हो सकती है। अत: आयु की कामना करने वाले मनुष्य को आयुर्वेद के उपदेशों मे परम-श्रद्धा रखनी चाहिये।

दूसरे शब्दों में कहें, तो आयुर्वेद के उपदेशों, विधि-निषेधों का आदर-पालन किये बिना स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा और रोगियों के रोग का प्रशमन नहीं हो सकता एवं उनको हितायु-सुखायु की प्राप्ति का लाभ भी नहीं मिल पाता। यहॉं सुखायु का तात्पर्य यह है कि जो आयु रीरिक एवं मानसिक रोगों से रहित होकर व्यतीत हो रही हो, विशेषत: वावस्था के दिन। क्योंकि बाल्यावस्था एवं वुद्धावस्था में परावलम्बन रूपी कुछ न कुछ कष्ट रहता है, भले ही कोई शारीरिक एवं मानसिक, ज्वर एवं चिन्ता आदि रोग न हो। जिस आयु में शरीर की अवस्था के अनुसार बल, वीर्य, यश,पौरुष तथा पराक्रम हो,जब ज्ञान(विचार-शक्ति आदि नसिक ज्ञान), विज्ञान(विवेक शक्ति आदि बौद्धिक ज्ञान), श्रोत्र आदि ज्ञानेन्द्रिय समूह आदि शब्दादि ग्रहण में एवं हस्तपाद आदि कर्मेन्द्रिय समूह ग्रहण-धारण एवं गमन आदि कर्म करने में बलवान हों, जब परम समृद्धि, सुख साधन सम्पदा हो, विविध प्रकार के रुचिवान उपभोग विद्यमान हों,इच्छानुसार सोने-जागने,घूमने-फिरने, करने-कराने एवं सोचने-समझने का अवसर एवं अधिकार हो, वह आयु "सुखायु' कही जाती है, इसी का नाम "सुखी जीवन' है। यह सुख का निरपवाद लक्षण है। जब कभी इस प्रकार का जीवन व्यतीत होता है, तब "सुख' समझा जाता है । आयुर्वेद के मतानुसार आरोग्य या नीरोगता का नाम सुख है।

इसी आरोग्य रूपी सुख की प्राप्ति के लिए आयुर्वेद शास्त्र में अनेक सिद्धान्त बताये गये हैं । लेकिन सबसे महत्वपूर्ण उपदेश दिनचर्या, रात्रिचर्या एवं ऋतुचर्या से सम्बन्धित बताया गया है ।

दिनचर्या- प्रतिदिन करने योग्य आचरण का नाम "दिनचर्या' है । चरितुं योग्या चर्या । अर्थात्‌ वह आचरण जो योग्य या उचित हो, दूसरे शब्दो में स्वस्थ नर-नारी के प्रतिदिन करने योग्य कार्यकलापों को दिनचर्या के अन्तर्गत लेते हैं । लेखक- डॉ.धर्मेन्द्र शर्मा, एम.डी.

 

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